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साइबर अपराध की राजधानी

时间:2023-09-24 19:11:36 来源:网络整理编辑:दीपक चाहर wife

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सड़कें धूल भरी. सड़कों के किनारे बेतरतीब ढंग से बनी दुकानें. पान-सिगरेट की गुमटियां. उनके आसपास उलटे

सड़कें धूल भरी. सड़कों के किनारे बेतरतीब ढंग से बनी दुकानें. पान-सिगरेट की गुमटियां. उनके आसपास उलटे-सीधे तरीके से पार्क किए गए स्कूटर,साइबरअपराधकीराजधानी मोटरसाइकिलें, रिक्शे, बसें और ट्रक. पहली नजर में जामताड़ा में भी उत्तर भारत के दूसरे कस्बों जैसा ही पिछड़ापन और अराजकता पसरी दिखाई देती है. पश्चिम बंगाल की सीमा पर बसे झारखंड के इस कस्बे में इसी अराजकता और पिछड़ेपन के बीच कहीं-कहीं संपन्नता की चमक कौंध जाती है. कुछ मेगामार्ट और चमकदार शोरूम्स या फिर गरीब मोहल्लों के बीच सफेद रंग की आलीशान कोठियां. ये अपराध की उस अंधेरी दुनिया से निकली चमक है जिसकी वजह से जामताड़ा बदनाम हो चुका है.खासतौर पर जामताड़ा नामक नेटफ्लिक्स की सीरीज आने के बाद इस कस्बे और साइबर फ्रॉड को एक दूसरे का पर्याय माना जाने लगा है. रांची के रहने वाले 21 साल के बंटी से बेहतर इसे कौन जानेगा? वह अपने पिता के पास बैठा था और उसका फोन स्विच ऑफ था. फिर भी उसके पिता के फोन पर उसकी ओर से एक व्हाट्सऐप मैसेज गया, ''पापा, मेरा एक्सीडेंट हो गया है. अस्पताल जा रहा हूं. 20 हजार रुपए पेटीएम के जरिए नंबर 9834...पर भेज दीजिए.''बंटी की इस कहानी को जामताड़ा के साइबर सेल के अफसर सुनाते हैं. बंटी को किसी अनजान नंबर से फोन आया और फोन करने वाले ने बताया कि मोबाइल नेटवर्क में आ रही दिक्कत एक नंबर पर मिस्ड कॉल करने से ठीक हो सकती है. मिस्ड कॉल करने के बाद आधे घंटे तक फोन को बंद करने को कहा गया. बंटी ने ठीक वैसा ही किया. करीब 15 मिनट बाद बंटी के बगल में बैठे उसके पिता भोला मंडल के पास एक व्हाट्सऐप मैसेज आया जिसे पढ़कर भोला हक्का-बक्का रह गए. बेटा पास बैठा था और उसके मोबाइल फोन से उसके ही एक्सीडेंट की खबर आई थी. बेटा बगल में बैठा था इसलिए पिता ने राहत की सांस ली. बंटी ने तुरंत अपना फोन ऑन किया, पर उसका व्हाट्सऐप काम नहीं कर रहा था. बंटी का व्हाट्सऐप हैक हो चुका था. सैकड़ों रिश्तेदारों को एक्सीडेंट वाला मैसेज जा चुका था. बंटी ने तुरंत सभी को फोन कर सतर्क किया और थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई.बंटी तो बच गया मगर उसके जैसे सैकड़ों लोग साइबर फ्रॉड के इस जाल में फंस चुके हैं. और, जामताड़ा इसका प्रमुख अड्डा बन चुका है. जामताड़ा के साइबर थाने में रोजाना ऐसे नए-नए मामले दर्ज होते हैं. बात जामताड़ा या झारखंड तक ही सीमित नहीं हैं. देश के अलग-अलग इलाकों के लोग मोबाइल फोन के जरिए ठगी करने वालों की नई-नई तरकीबों के शिकार हो रहे हैं.साइबर क्राइम के एक अधिकारी ने ठगी का शिकार हुए एक और आदमी के बारे में जानकारी दी, जिसको साइबर फ्रॉड करने वालों ने ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया था. सेंट्रल एक्साइज के कर्मचारी ब्रजेश (बदला हुआ नाम) भी रांची के ही रहने वाले हैं. उनके पास एक दिन फेसबुक पर एक लड़की का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया. ब्रजेश ने उसे स्वीकार कर लिया. दोनों के बीच मैसेंजर पर बातचीत शुरू हो गई जो धीरे-धीरे अंतरंगता में बदल गई. एक रात लड़की व्हाट्सऐप पर वीडियो कॉल करती है और ब्रजेश को फोन की स्क्रीन पर निर्वस्त्र लड़की नजर आती है. उसके कहने पर ब्रजेश भी कपड़े उतारते हैं, बातचीत पूरी होने से पहले ही फोन कट जाता है.ब्लैकमेल की कहानी यहां से शुरू होती है जो ब्रजेश को खुदकुशी के कगार तक ले जाती है. अगली सुबह ब्रजेश के पास फिर एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन करने वाले ने खुद को रांची के साइबर थाने में तैनात इंस्पेक्टर बताया और ब्रजेश से कहा कि उनके खिलाफ साइबर थाने में सेक्सुअल असॉल्ट की रिपोर्ट दर्ज है. इसके बाद ब्रजेश के व्हाट्सऐप पर पिछली रात लड़की के साथ हुई वीडियो चैट की स्क्रीन रिकॉर्डिंग आई. इस तरह ब्रजेश को जाल में फंसाया जा चुका था.ब्रजेश को ब्लैकमेल करके उनसे एक बैंक एकाउंट में 65,000 रुपए ट्रांसफर करने को कहा गया. उन्होंने पैसा ट्रांसफर कर दिया, पर ब्लैकमेल खत्म नहीं हुआ. अगले दिन एक और फोन आया तथा फोन करने वाले ने खुद को एक बड़े न्यूज चैनल का संवाददाता बताया और कहा कि अगर पैसे नहीं दिए तो उनकी वीडियो क्लिप वायरल कर दी जाएगी.साइबर सेल के एक अधिकारी ने बताया कि ब्लैकमेल का शिकार हुए ब्रजेश ठगों को डेढ़ लाख रुपए दे चुके थे, पर पैसे की मांग रुक नहीं रही थी. यहां तक कि ब्रजेश खुदकुशी करने के बारे में सोचने लगे थे. लेकिन फिर कुछ दोस्तों की सलाह पर उन्होंने साइबर क्राइम सेल में रिपोर्ट दर्ज करवाने का फैसला लिया. उन्हें बताया गया कि वे 'सेक्सटॉर्शन' का शिकार हुए हैं.पुलिस कहती है कि जामताड़ा के ठग हर रोज ऐसे नए-नए तरीके गढ़ रहे हैं, जिनका तोड़ पुलिस के पास नहीं होता. पूर्वी झारखंड के जिले जामताड़ा को लोग 'साइबर क्राइम कैपिटल' के नाम से जानते हैं. साइबर फ्रॉड के मामले में अब तक 20 से ज्यादा राज्यों की पुलिस जामताड़ा के चक्कर काट चुकी है. कभी इन ठगों को पकड़ती है, कभी खाली हाथ लौटती है. मगर यह धंधा बदस्तूर चल रहा है.जामताड़ा के एसपी मनोज स्वर्गियारी कहते हैं कि साइबर क्राइम इसलिए नहीं रुक रहा है क्योंकि समाज में इसे काफी हद तक स्वीकार्यता मिल चुकी है. वे कहते हैं, ''नौजवान लड़के अपने आसपास के लड़कों के पास महंगे मोबाइल, गाड़ियां देख यह काम कर रहे हैं. घर वाले भी यह काम करने से मना नहीं करते. समाज में भी विरोध नहीं होता. वजह लोग इसे हत्या, रेप जैसा वीभत्स क्राइम नहीं मानते. फिर पैसा तो आ ही रहा है.''एसपी स्वर्गियारी ने बताया कि साइबर ठग हर बार नया तरीका ढूंढ लेते हैं. उन्होंने कहा, ''ये साइबर क्रिमिनल्स आपके दिमाग, आपकी दिक्कतों, जरूरतों के हिसाब से नई-नई तरकीबें खोज रहे हैं. हाल में हमने करीब 50 लोगों को गिरफ्तार किया जो बिजली का बिल जमा करवाने के नाम पर ठगी कर रहे थे. ये आपको मैसेज करेंगे कि आपका बिजली बिल नहीं जमा है. जमा नहीं किया तो रात 10.30 बजे बिजली कट जाएगी. आप बिजली कटने के डर से मैसेज में बताए नंबर पर कॉल करते हैं और वे आपको फंसा लेते हैं.''पटना में रहने वाले एक रिटायर्ड डीआइजी भी इस रैकेट का शिकार बन चुके हैं. उनके पास मैसेज आया कि रात 10.30 बजे तक बिल जमा नहीं किया तो बिजली काट दी जाएगी. इससे बचने के लिए एक बिजली विभाग के अधिकारी का नंबर दिया गया. डीआइजी ने कॉल किया तो उन्हें 85,000 रुपए की चपत लग गई.जामताड़ा में पुलिस और ठगों के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहता है. बढ़ती साइबर ठगी के कारण 2018 में यहां साइबर थाना खोला गया. साइबर सेल के डीएसपी मजरुल होदा इन साइबर क्रिमिनल्स को पकड़ने में आने वाली दिक्कत का जिक्र करते हुए कहते हैं, ''बाकी जगह हमें पता होता है कि यह घटनास्थल है, क्राइम सस्पेक्ट होते हैं. यहां न सिम उस बंदे का होता है, न अकाउंट उस बंदे का. न वह खुद की कोई सही पहचान बताता है. तो यहां टोटल काम मास्क के पीछे रहकर होता है.''वे बताते हैं कि साइबर ठग मोबाइल का सिम बिहार, बंगाल और ओडिशा से मंगाते हैं. चोरी के मोबाइल बंगाल से लाए जाते हैं और जिन एकाउंट्स में पैसा ट्रांसफर करवाना होता है उन पर भी ठगों की नजर रहती है. ये पैसे यूपी, बिहार और बंगाल के गांवों में गरीब लोगों के जनधन एकाउंट में जमा करवाए जाते हैं. खाताधारक को कुछ रुपया देकर उसकी पासबुक और एटीएम कार्ड ले लिया जाता है और उसके जरिए रुपया ऐंठा जाता है.इन ठगों को पकड़ने के लिए पुलिस कॉल डिटेल्स मंगवाती है और जिन नंबरों से सबसे ज्यादा फोन किए जाते हैं उनके लोकेशन पता करके छापेमारी की जाती है. डीएसपी मजरुल का कहना है कि साइबर सेल 2018 से अब तक करीब 700 ठगों को गिरफ्तार कर चुका है. उन्होंने बताया, ''इस साल 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.''लेकिन, पुलिस के सामने सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब साइबर ठग अदालत से छूट जाते हैं या मामूली सजा काटकर बरी हो जाते हैं. अधिकारी कहते हैं कि साइबर ठगी के लिए कानून सिर्फ तीन बरस की सजा देता है. डीएसपी मजरुल ने फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी है. वे कहते हैं, ''जब हम लोगों ने चंबल के डाकुओं को खत्म कर दिया. जब हमने उग्रवाद पर शिकंजा कस दिया. तो ये साइबर क्रिमिनल्स तो चोर हैं. मास्क लगाकर परदे के पीछे से काम करते हैं. डरपोक आदमी ही न ऐसे काम करेगा.'' लेकिन, नई-नई तरकीबों के साथ ठगी का यह काला धंधा अब तक जिस तरह धड़ल्ले से जारी है, इस पर लगाम लगती नहीं दिख रही.