सखी चारों तरफ चांदनी थी,जबसाजननेखोलीमोरीअंगिया हम तरण-ताल में उतरे थे,जल तो कुछ शीतल था लेकिन, ये बदन हमारे जलते थे,जल में ही सखी सुन साजन ने, मुझको बाँहों में भींच लिया,उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.हर्षित उल्लासित मन से हमने, कई भांति जल में क्रीड़ा की,साजन ने दबा उभारों को, मन-मादक मुझको पीड़ा दी,यत्र-तत्र उसके चुम्बनों का, मैंने जरा नहीं प्रतिकार कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मुझको बाँहों में उठा सखी, कभी जल में उछाल के झेल लिया,कभी मुझे पकड़ कर कमर से, जल में चक्कर सा घुमा दिया,हाथों से जल मुझपे उछाल, कई भांति उसने चुहुल किया,उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मैं भी साजन को छेड़त थी, कभी अंग को पकड़त छोड़त थी,साजन की कमर, नितम्बों पर, कभी च्योंटी काट के दौड़त थी,साजन के उभरे सीने पर, मैंने दंताक्षर री सखी छाप दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.गर्दन, जांघें, स्तन, नितम्ब, पेडू पे ओष्ठ-चिह्न छापे गए,ऊँगली-मुट्ठी के पैमाने से, वस्त्र सहित दृढ़ स्तन नापे गए,होंठों पे रख कर तप्त होंठ, मुख में मुख का रस घोल दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.अब जहाँ-जहाँ साजन जाता, मैं वहाँ- वहाँ पर जाती थी,उससे होने की दूर सखी, नहीं चेष्टा मैं कर पाती थी,जल में डूबे द्रवित अंग लिए, नैनों से साजन को न्योत दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.सखी साजन ने जल के अन्दर, मुझे पूर्णतया निर्वस्त्र किया,हाथों से जलमग्न उभारों को, कई भांति दबाकर छोड़ दिया,जल में तर मेरे नितम्बों को, कई तरह से उसने निचोड़ दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.ऊँगली-मुट्ठी से वस्त्र रहित नितम्ब, नोचे-खरोचे-मसले गए,आटे की लोई से स्तन द्वय, दबाये-भींचे-पकड़े-छोड़े गए,नितम्बों की गहन उस घाटी में, उँगलियों ने गमन भी खूब कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.स्तन की घुंडी पे चुम्बन ले, जिह्वा से उनको उकसाया,पहले घुंडी मुंह अन्दर की, फिर अमरुद तरह स्तन खाया,होंठ-जिह्वा-दांतों से दबा-दबा, सारा रस उनका चूस लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन मेरे पीछे आया, मुझे अंग की गड़न महसूस हुईस्तन से लेकर द्रवित अंग तक, उँगलियाँ की सरसरी विस्तृत हुईदोनों हाथों में भींची कमर, और अंग पे मुझे बिठाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.सखी साजन ने भर बाँहों में, मेरे होंठों को अतिशय चूमा,जल में जलमग्न स्तनों को, हाथों से उभार-उभार चूमा,स्तनों के मध्य रख कर अंग को, उन्हें कई-कई बार हिलोर दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.होकर अब बड़ी बेसब्र सखी, मैं जल-तल पर मछली सी मचली,साजन का अंग पकड़ने को, मेरी मुट्ठी घड़ी-घड़ी फिसलीसाजन की सख्त उँगलियों ने, अंग में कमल के पुष्प कई खिला दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.तरण-ताल के जल में सखी, हमरे अंग के रंग विलीन हुएजल में चिकने होकर हमने, उत्तेजना के नए-नए शिखर छुए,मैंने मुट्ठी से अंग के संग, साजन को भाव-विभोर किया.उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.सखी साजन ने मुझको अपनी, निर्मम बाँहों में उठा लिया,और ला के किनारे तट पे मुझे, हौले से सखी बिठाय दिया,खुद वो तो रहा जल के अन्दर, मुझे जांघों से पकड़कर खीच लिया.उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मैं कुहनी के बल बैठी थी, अंग उसके मुख के सम्मुख था,मैं सोच-सोच उद्वेलित थी, मैं जानत थी अब क्या होगासाजन ने अपनी जिह्वा से, मेरी मर्जी का सखी काम कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मस्ती के मारे सुन री सखी, अब मुझको कुछ न सूझत था,साजन होंठों और जिह्वा से, मेरे अंतर्रस को चूसत था,मैंने भी उठाकर नितम्ब सखी, मस्ती का उदाहरण पेश कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन के होंठ तो चंचल थे, जिह्वा भी अंग पर अति फिसली,कुहनी के बल मैंने नितम्ब उठा, जिह्वा अंग के अन्दर कर लीअंग में जिह्वा का मादक रस, सखी मैंने स्वयं उड़ेल लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन का दस अंगुल का अंग, मुझे जल में और विशाल दिखा,उसकी मादकता पाने को, सखी मेरे मन भी लोभ उठामैंने जल में अब उतर सखी, साजन को किनारे बिठा दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.भीगे अंग को मुख के रस से, चहुँ और सखी लिपटाय दियाहोठों से पकड़ कर कंठ तरफ, मैंने उसको सरकाय लियानीचे के होंठ संग जिह्वा रख, मैंने लिप्सा अपनी पूर्ण कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.जिह्वा अंग को थी उकसाती, उसे होठों से मैं कसकर पकड़े,साजन के बदन में थिरकन के, सखी कई-कई अब बुलबुले उड़े,अंग को जिह्वा-होठों से खींच, सखी मैंने कंठ लगाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.उसको करने से प्यार सखी, मेरा मन कभी न भरता था,मुंह का रस अंग भिगोने को, सखी कभी भी न कम पड़ता थाचूस-चाट-चटकार-चबा, कई बार उसे कंठस्थ किया,उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन भी अब जल में उतरे, मुझे अपनी बाँहों में उठा लियाफिर कमर से मुझे पकड़ सखी, अपने अंग पे जैसे बिठा लियाअंग से अंग मिल गया सखी, अंग स्वतः ही अंग में उतर गयाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.दस अंगुल के कठोर अंग ने, मेरे अंग में स्वछंद प्रवेश कियाहम कमर तक डूबे थे सखी, जल में अंग ने अंग धार लियासाजन ने पकड़ नितम्बों से, थोडा ऊपर मुझे उठाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन के हाथों के आर-पार, मैंने जंघाएँ सखी फंसा लईसाजन की गर्दन में बाहें लपेट, नितम्बों को धीमी गति दईदोनों हाथों से पकड़ नितम्ब, साजन ने उन्हें गतिमान कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मेरी गति से सखी जल के मध्य, छप-छप आवाजें होती थी,मुख से निकली मेरी आह ओह, मेरे सुख की कहानी कहती थीमादक अंगों की लिसलिसी छुअन, रग-रग को भाव विभोर कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.जंघा से पार दो कठोर हाथ, नितम्बों को जकड़े-पकड़े थे,कभी उसने सहलाया उनको, कभी उँगलियों से गए मसले थेमेरे अंग ने साजन के अंग की, चिकनाई सखी और बढ़ा दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन के अंग पे चढ़-चलकर, मैं सुख के शिखर तक जा पहुँची,अंगों के घर्षण-मर्दन से, तन में ज्वालायें कई-कई धधकीं,मैं जैसे ही स्थिर हुई सखी, साजन ने नितम्ब-क्रम चला दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.वृक्षों से लिपटी लता सदृश, अंग उसके अंग से चिपटा थाअंग घर्षण से निकले स्वर से, वातावरण बहुत ही मादक थाउसका अंग तो मेरे अंग के, जैसे कंठ के भी सखी पार गयाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.जल में छप-छप अंग में लप-लप, मुंह में थे आह-ओह के शब्दसाँसें थी जैसे धौंकनी हो, हमें देख प्रकृति भी थी स्तब्धउसके जोशीले नितम्बों ने, जल में लहरें कई उठाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन का सिर पकड़ के हाथों में, मुख उसके जिह्वा घुसाय दियाहोठों को होठों से जकड़ा, जिह्वा से जिह्वा का मेल कियाजैसे अंग परस्पर मिलते थे, जिह्वा ने मुख में वही खेल कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साँसों की गति थी तूफानी, पर स्पंदन की उससे भी तेजअंगों की तरलता के आगे, चांदनी भी थी जैसे निस्तेजचुम्बन के स्वर, जल की छप-छप, साँसों के स्वर में घोल दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.अति तीव्र गति से सांसों के, तूफ़ान निरंतर बह निकले,अति दीर्घ आह-ओह के संग, बदन कँपकपाए हम बह निकले,अंग के अन्दर बने तरण ताल, मन ने उनमें खूब किलोल कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.अंगों से जो रस बह निकले, अन्तरंग ताल के जल में मिलेसांसों में उठे तूफानों के, अब जाके धीमे पड़े सिलेतरण ताल में उठी लहरों ने, अब जाकर के विश्राम कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.सब शांत हुआ लेकिन री सखी, मैं साजन से लिपटी ही रहीमेरे अंग में उसके अंग की सखी, गहन ऊष्मा घुलती रहीमुझे पता नहीं कब साजन ने, मुझे तट पर लाकर लिटा दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मैंने खोली जब आँखें तो, साजन को निज सम्मुख पायाहोठों पर मृदु मुस्कान लिए, उसे मुख निहारते हुए पायाबाँहों से साजन को घेर सखी, तृप्त होंठों से होंठ मिलाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !